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त्रिपुरा बालविवाह मामले में देश में दूसरे नंबर पर

ऑक्सफ़ोर्ड विश्वविद्यालय द्वारा हाल ही में ‘यंग लाइव्स- एन इंटरनेशनल स्टडी ऑन चाइल्डहुड पॉवर्टी’ नामक शीर्षक से एक अध्ययन रिपोर्ट जारी की गई। रिपोर्ट के मुताबिक़ अध्ययन में पाया गया है कि 15-19 साल के आयुवर्ग की कन्याओं के बालविवाह के मामले में भारत का उत्तर पूर्वी राज्य त्रिपुरा, देश में दूसरे स्थान पर है। यह अध्ययन ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी की एक टीम द्वारा संयुक्त रूप से किया गया है। इस अध्ययन में राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (2015-16) का हवाला दिया गया है।

अध्ययन के अनुसार:-

  • त्रिपुरा में होने वाले सभी बाल विवाह के मामलों में 80 फ़ीसदी विवाह तीन ज़िलों के स्थित ग्रामीण क्षेत्रों में होते हैं।
  • 15 से 19 आयुवर्ग की कन्याओं के बालविवाह का राष्ट्रीय औसत 9 फ़ीसदी है जबकि त्रिपुरा के लिए यही आंकड़ा 21.6 फ़ीसदी है।
  • देश के 100 ज़िलों में से त्रिपुरा के चार ऐसे ज़िले शामिल हैं जहां बाल विवाह अत्यधिक प्रचलन में है।
  • त्रिपुरा के धलाई ज़िले में बाल विवाह की दर 24.7 फ़ीसदी है, जोकि राज्य में सर्वाधिक है। जबकि बाल विवाह के उच्च प्रसार वाले अन्य ज़िलों में दक्षिण त्रिपुरा, उत्तरी त्रिपुरा और पश्चिम त्रिपुरा आते हैं।
  • किशोरावस्था में मां बनने वाली लड़कियों से पैदा होने वाले बच्चों की संख्या के विश्लेषण पर यह पाया गया कि 52 फ़ीसदी विवाहित किशोर लड़कियों ने कम-से-कम एक बच्चे को जन्म दिया है। जबकि इनमें से 5.5 फ़ीसदी लड़कियों ने कम-से-कम दो बच्चों को जन्म दिया था और एक फ़ीसदी में दो से ज़्यादा बच्चे थे।

विदित हो कि भारत में बाल विवाह निषेध अधिनियम 2006 के तहत बाल विवाह दंडनीय अपराध है। इसमें 18 वर्ष से कम आयु की बच्चियों का विवाह करने पर दो साल की जेल और एक लाख रुपये का जुर्माने का प्रावधान है। ऐसे विवाह में हिस्सा लेने वाले लोगों पर भी कानूनी कार्रवाई का प्रावधान है।

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-4 (2015-16) के अनुसार, देश में बाल विवाह की औसत दर 11.9 फ़ीसदी है। यद्यपि इस मामले में हिमाचल प्रदेश और मणिपुर में आंकड़ों में कुछ वृद्धि जरूर दर्ज की गई है किन्तु उत्तर प्रदेश की स्थिति में काफी सुधार हुआ है। राज्य में यह दर 29 फीसदी से घटकर सिर्फ 6.4 फीसदी ही रह गई है। दूसरी ओर पश्चिम बंगाल में भी यह दर 34 फीसदी से घटकर 25.6 फीसदी रह गई है।

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