गिग अर्थव्यवस्था (Gig Economy): प्रभाव और प्रासंगिकता
गिग (Gig) क्या है?
“गिग” एक निश्चित अवधि तक चलने वाली नौकरी को कहते हैं। अक्सर यह एक परियोजना तक या जब तक कंपनी को उस विशिष्ट की आवश्यकता होती है, चलती है। यह अल्पकालिक या दीर्घकालिक और स्थायी भी हो सकती है किन्तु जब तक इसकी आवश्यकता रहती है तब तक ही यह रहती है। “सभी गिग्स जॉब हैं, लेकिन सभी जॉब्स गिग्स नहीं हैं”। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में इस शब्द को सभी प्रकार के उद्योगों और भूमिकाओं पर लागू किया जा सकता है। ग़ौरतलब है कि दैनिक मज़दूरी करने वालों को भी गिग इकॉनमी का ही हिस्सा माना जाता है।
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गिग अर्थव्यवस्था (Gig Economy) क्या है?
- डिजिटलीकरण के इस दौर में रोज़गार की परिभाषा और कार्य का स्वरूप भी धीरे-धीरे बदल रहा है। एक नई वैश्विक अर्थव्यवस्था उभर रही है, जिसे ‘गिग अर्थव्यवस्था’ (Gig Economy) की संज्ञा दी जा रही है।
- गिग इकॉनमी में फ्रीलान्स कार्य और एक निश्चित अवधि के लिये प्रोजेक्ट आधारित रोज़गार शामिल है।
- गिग अर्थव्यवस्था में किसी व्यक्ति की सफलता उसकी विशिष्ट निपुणता पर निर्भर होती है। असाधारण प्रतिभा, गहरा अनुभव, विशेषज्ञ ज्ञान या प्रचलित कौशल प्राप्त श्रमबल ही गिग इकॉनमी में कार्य कर सकता है।
- आने वाला समय गिग इकॉनमी का होगा, इससे इनकार नहीं किया जा सकता है।
साधारण भाषा में कहें तो गिग इकॉनमी एक ऐसी व्यवस्था है जहाँ कोई भी व्यक्ति अपना पसंदीदा काम कर सकता है। अर्थात् गिग इकॉनमी में कंपनी द्वारा तय समय में प्रोजेक्ट पूरा करने के एवज़ में भुगतान किया जाता है, इसके अतिरिक्त किसी भी बात से कंपनी का कोई मतलब नहीं होता।
- अर्थशास्त्री रोनाल्ड कोस (Ronald Coase) ने कहा था कि कोई भी कंपनी तब तक फलती-फूलती रहेगी जब तक कि एक चारदीवारी में बैठाकर लोगों से काम कराना, बाज़ार में जाकर काम करा लेने से सस्ता होगा।
- अर्थात् कोई भी कंपनी यदि बाज़ार में जाकर, प्रत्येक विशिष्ट काम अलग-अलग विशेषज्ञों से कराती है और यह लागत कंपनी की सामान्य लागत से कम है तो ज़ाहिर है कि वह एक निश्चित वेतन पर लम्बे समय के लिये लोगों को नौकरी पर रखने की बजाय बाज़ार में जाना पसंद करेगी।
प्रभाव
- अर्थव्यवस्था के डिजिटलीकरण के कारण और भी लोग गिग इकॉनमी का हिस्सा बनने को मजबूर होंगे और इससे गरीब तो गरीब बना ही रहेगा साथ में उनकी संख्या में भी उल्लेखनीय वृद्धि होगी।
- यद्यपि आने वाला समय गिग इकॉनमी का होगा और वैश्विक अर्थव्यवस्था में बदलाव के संकेत दिख रहे हैं किन्तु यह कहना कि बड़ी कंपनियाँ बंद ही हो जाएंगी यह भी सही नहीं होगा।
- ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के एक अध्ययन के मुताबिक अकेले अमेरिका में अगले दो दशकों में डेढ़ लाख रोज़गार खत्म हो जाएंगे। अमेरिका में तो मानव संसाधन इतना दक्ष है कि उसे गिग इकॉनमी का हिस्सा बनने में कोई समस्या नहीं आएगी लेकिन भारत में यह स्थिति नहीं है।
- वर्तमान में मशीनों द्वारा नहीं बल्कि सॉफ्टवेयरों द्वारा मानव श्रम का प्रतिस्थापन किया जा रहा है। अतः डिजिटलीकरण रोज़गारों को कम करने में प्रत्यक्ष भूमिका निभा रहा है।
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एम्प्लॉयमेंट 4.0 बनाम एम्प्लॉयमेंट 3.0
गिग इकॉनमी के इस दौर को एम्प्लॉयमेंट 4.0 की संज्ञा दी जा रही है। जबकि इससे पहले का समय एम्प्लॉयमेंट 3.0 कहा जाता है। एम्प्लॉयमेंट 3.0 में वैश्वीकरण, निजीकरण और उदारीकरण ने बाज़ार में निकलकर काम लेना आसान बना दिया था, यही कारण था कि बड़ी कंपनियाँ तेज़ी से बंद होने लगीं और उनकी जगह ले ली छोटी-छोटी आउटसोर्सिंग फर्मों ने।
एम्प्लॉयमेंट 4.0 मुख्य रूप से अनवरत इंटरनेट कनेक्टिविटी, रोबोटिक्स, आर्टिफिसियल इंटेलिजेंस, नैनो टेक्नोलॉजी और वर्चुअल रियलिटी पर आधारित है। रोबोटिक्स, आर्टिफिसियल इंटेलिजेंस, नैनो टेक्नोलॉजी और वर्चुअल रियलिटी जैसी तमाम तकनीकें जब आपस में मिलेंगी तो उत्पादन और निर्माण के तरीकों में क्रांतिकारी परिवर्तन देखने को मिलेगा। अतः कंपनियों को अब वैसे ही लोगों की ज़रूरत होगी जो दक्ष हैं और जिनसे प्रोजेक्ट बेसिस पर काम लिया जा सकता है।
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भारत के संदर्भ में Gig Economy की प्रासंगिकता
- भारत के संदर्भ में गिग अर्थव्यवस्था (Gig Economy) अनौपचारिक श्रम क्षेत्र का ही विस्तार है, जो लंबे समय से प्रचलित और अनियंत्रित है, इसमें श्रमिकों को कोई सामाजिक सुरक्षा, बीमा आदि की सुविधा नहीं मिलती है।
- एक अनुमान के मुताबिक़, अमेरिका में जहाँ श्रम शक्ति का 31 प्रतिशत भाग गिग इकॉनमी से संबंध रखता है वहीं भारत में यह आँकड़ा 75 प्रतिशत है। लेकिन दोनों ही देशों के आर्थिक परिदृश्यों में ज़मीन-आसमान का अंतर है।
- एम्प्लॉयमेंट 4.0 के कारण और भी लोग गिग इकॉनमी का हिस्सा बनने को मजबूर होंगे और इससे गरीब तो गरीब बना ही रहेगा साथ में उनकी संख्या में भी उल्लेखनीय वृद्धि होगी।
- एक अनुमान के मुताबिक, भारत में नए रोज़गारों (ब्लू-कॉलर और व्हाइट-कॉलर दोनों) का 56% हिस्सा गीग इकॉनमी कंपनियों द्वारा सृजित हो रहा है।
- कुछ नीति विशेषज्ञ हमेशा से इस बात के पक्षधर रहे हैं कि श्रम कानूनों में आवश्यक बदलावों को लागू करने की ज़रूरत है।
- विशेषज्ञों का मानना है कि भारत में गिग इकॉनमी के तहत उभरते स्टार्टअप्स को संतुलित तरीके से विनियमित करने की आवश्यकता है जिससे स्टार्टअप कंपनियों और श्रमिकों दोनों को ही इस क्षेत्र में आवश्यक सुविधाएँ उपलब्ध हो सकें।
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निष्कर्ष
90 के दशक अर्थात् कंप्यूटर एवं सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) तथा इलेक्ट्रॉनिक्स और स्वचालित मशीनों पर आधारित एम्प्लॉयमेंट 3.0 के दौर में भारत ने विश्व के लिये अपनी अर्थव्यवस्था के दरवाज़े खोल दिये। लेकिन भारत एम्प्लॉयमेंट 3.0 प्रकार के पर्याप्त रोज़गार उत्पन्न्कारने में असफ़ल रहा। यही कारण है कि आज भारत की 75 फ़ीसदी श्रम शक्ति ‘गिग इकॉनमी’ अपनाने को मजबूर है।
डिजिटलीकरण जिस प्रकार रोज़गारों को कम करने में प्रत्यक्ष भूमिका निभा रहा है उसे देखते हुए पूर्व के अनुभवों से यह ज्ञात होता है कि इन परिवर्तनों से सर्वाधिक प्रभावित वे समूह होते हैं जो अपने कौशल सामर्थ्य में निश्चित अवधि के भीतर वांछनीय सुधार लाने में असमर्थ रहे हैं। अतः सरकार द्वारा ऐसे लोगों को प्रशिक्षण हेतु पर्याप्त समय के साथ-साथ संसाधन भी उपलब्ध कराए जाने की आवश्यकता है।
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