लगातार सिकुड़ रहा है चंद्रमा: नासा ने किया अध्ययन
अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी ‘नैशनल एरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन’ (नासा) द्वारा किये गये हालिया अध्ययन चंद्रमा के लगातार सिकुड़ने की बात सामने आई है। इस अध्ययन में यह पाया गया है कि चंद्रमा का आकार विभिन्न कारणों से लगातार सिकुड़ रहा है। नासा का मानना है कि ऊर्जा खोने की प्रक्रिया के कारण ही चंद्रमा पिछले लाखों वर्षों से धीरे-धीरे लगभग 150 फुट (50 metres) तक सिकुड़ गया है।
दरअसल, 13 मई, 2019 को प्रकाशित नासा के लूनर रीकॉनिसेंस ऑर्बिटर (एलआरओ) द्वारा कैद की गई 12,000 से अधिक तस्वीरों के विश्लेषण से यह जानकारी सामने आई है। लूनर रीकॉनिसेंस ऑर्बिटर द्वारा चंद्रमा की 3डी तस्वीरें ली गई हैं। वैज्ञानिकों ने इन तस्वीरों का वैज्ञानिक विश्लेषण किया तथा चंद्रमा की सतह पर हो रहे बदलावों का अध्ययन करके यह रिपोर्ट जारी की। इन तस्वीरों में चंद्रमा में हुए परिवर्तनों को देखा जा सकता है।
मुख्य बिंदु:
- अध्ययन में पाया गया है कि चंद्रमा के उत्तरी ध्रुव के पास चंद्र बेसिन ‘मारे फ्रिगोरिस’ में दरार पैदा हो रही है और यह अपनी जगह से खिसक भी रहा है।
- पृथ्वी के विपरीत चंद्रमा पर कोई टैक्टोनिक प्लेट्स नहीं हैं तथा कई विशाल बेसिनों में से एक चंद्रमा का ‘मारे फ्रिगोरिस’ भूवैज्ञानिक नज़रिये से मृत स्थल माना जाता है इसके बावजूद चंद्रमा पर टैक्टोनिक गतिविधियों का होना वैज्ञानिकों के लिए हैरत की बात है।
- चंद्रमा पर आने वाले भूकम्पों के कारण चंद्रमा को सबसे अधिक हानि होती है जिसके कारण यह धीरे-धीरे सिकुड़ रहा है।
- वैज्ञानिकों के मुताबिक़, चंद्रमा में ऐसी गतिविधियां ऊर्जा खोने की प्रक्रिया में 4.5 अरब साल पहले हुई थीं।
- ऊर्जा खोने पर चंद्रमा की सतह अपनी पहली अवस्था में न आकर थोड़ी सिकुड़ी हुई रह जाती है, इसी प्रक्रिया में चंद्रमा पर भूकंप आते हैं।
- संभावना जताई गई है कि लाखों साल पहले हुई भूगर्भीय गतिविधियां आज भी जारी हैं।
ग़ौरतलब है कि सबसे पहले 1960 और 1970 के दशक में अपोलो अंतरिक्ष यात्रियों द्वारा चंद्रमा पर भूकंपीय गतिविधियों को मापना शुरू किया गया था। इसमें चंद्रमा पर आने वाले भूकंपों का अध्ययन किया गया था। उनका यह विश्लेसषण नेचर जीओसाइंस में प्रकाशित हुआ था।
लूनर रीकॉनिसेंस ऑर्बिटर (Lunar Reconnaissance Orbiter-LRO) क्या है?
एलआरओ नासा का एक रोबोटिक अंतरिक्ष यान है। नासा द्वारा इसे 18 जून, 2009 को लॉन्च किया गया था। यह चंद्रमा की 3डी तस्वीरें पृथ्वी पर भेजता है। इसके द्वारा भेजी गई पहली तस्वीर 2 जुलाई, 2009 को प्रकाशित की गई थी। एलआरओ द्वारा एकत्रित की गई जानकारी चंद्रमा पर मानव के भविष्य को निर्धारित करने में अहम भूमिका निभाती है। इसके द्वारा किये जा रहे मैपिंग से चंद्रमा की सतह पर उतरने वाले अंतरिक्ष यानों को भी सहायता मिल रही है। इससे अन्तरिक्ष यानों को सुरक्षित लैंडिंग की सतह के बारे में सटीक जानकरी मिल जाती है। वर्तमान में यह एक ध्रुवीय मानचित्रण कक्षा में चंद्रमा की परिक्रमा कर रहा है।