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दिसम्बर 2018 तक सभी पूर्वोत्तर राज्यों की खुले में शौच से मुक्ति हेतु प्रतिबद्धता

पूर्वोत्तर राज्यों की एक समीक्षा कार्यशाला बैठक का आयोजन 14 नवंबर, 2018 को असम के गुवाहाटी में किया गया जिसमें खुले में शौच से मुक्ति की स्थिति, ठोस और तरल कचरा प्रबंधन तथा ग्रामीण जलापूर्ति की स्थिति पर चर्चा की गई। इस समीक्षा कार्यशाला में शामिल हिमाचल प्रदेश, असम, मणिपुर, मेघालय, मिज़ोरम, नगालैंड, त्रिपुरा और सिक्किम की टीमों ने अपने प्रयासों के बारे में बताया।
बैठक में जो राज्य खुले में शौच से मुक्त नहीं हैं, उन्होंने प्रतिबद्धता ज़ाहिर की कि वे दिसम्बर 2018 तक खुले में शौच से मुक्त हो जाएंगे। सिक्किम देश का पहला खुले में शौच से मुक्त राज्य है। राज्य की टीम ने ठोस और तरल कचरा प्रबंधन पहलों की जानकारी दी। असम के उपायुक्तों ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के ज़रिये केन्द्रीय टीम से बातचीत की।
इस अवसर पर पेयजल एवं स्वच्छता मंत्रालय के सचिव परमेश्वरन अय्यर ने इस दिशा में केन्द्र और राज्यों के संयुक्त प्रयासों के महत्व पर बल दिया। साथ ही उन्होंने कहा कि लोगों की आदतों में बदलाव लाने पर लगातार ध्यान दिया जाना और इस दिशा में लोगों के साथ सम्पर्क किया जाना चाहिए। बैठक के बाद पूरे पूर्वोत्तर के प्रतिष्ठित मीडिया कर्मियों और मीडिया घरानों के साथ वार्ता की गई।

देश का पहला खुले में शौच-मुक्त (ओडीएफ) राज्य – सिक्किम:

  • खुले में शौच से मुक्त होने वाला सिक्किम भारत का पहला राज्य है।
  • यह स्वच्छ भारत अभियान के शुरू होने के 6 वर्ष पूर्व (2006 में) ही शौच- मुक्त हो गया था।
  • यहाँ शौचालयों के निर्माण हेतु लकड़ी व पत्थरों के अतिरिक्त राज्य में मौजूद स्थानीय सामग्रियों जैसे बांस से बनी संरचनाओं (जो स्थानीय भाषा में ‘इकरा’कहलाती हैं) का भी उपयोग किया गया है।

भारत में शौच-मुक्त राज्य/ज़िले:

  • अब तक स्वच्छ भारत मिशन के तहत 8 करोड़ से भी ज़्यादा घरों में शौचालय बनाए जा चुके हैं। इस अभियान का लक्ष्य 2 अक्तूबर, 2019 को महात्मा गांधी जी 150वीं जयंती तक पूरे देश को खुले में शौच से मुक्त करना है।
  • स्वच्छ भारत मिशन के तहत शुरू किये गए इस अभियान के अंतर्गत अब तक देशभर के 4.30 लाख गांव, 444 ज़िले और 19 राज्य और केंद्र शासित प्रदेश स्वयं को खुले में शौच-मुक्त घोषित कर चुके हैं। सिक्किम, हिमाचल प्रदेश, केरल, हरियाणा, उत्तराखंड, गुजरात, अरुणाचल प्रदेश, छत्तीसगढ़, चंडीगढ़ और दमन एवं दीव इनमें प्रमुख रूप से शामिल हैं।
  • इस सन्दर्भ में वर्ष 2017 में भारतीय गुणवत्ता परिषद तथा वर्ष 2016 में राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन द्वारा किए गए दो स्वतंत्र सर्वेक्षणों द्वारा इन शौचालयों का क्रमशः 91% तथा 95% उपयोग किए जाने के आंकड़े सामने आये।
  • यूनिसेफ के एक अनुमान के अनुसार स्वच्छता का अभाव भारत में हर साल एक लाख से भी अधिक बच्चों की मौत का कारण बनता है।

शौच-मुक्त (ओडीएफ) का अभिप्राय:

भारत सरकार के पेयजल एवं स्वच्छता मंत्रालय द्वारा तय की गयी खुले में शौच से मुक्त (ओडीएफ) की सार्वभौमिक परिभाषा के अनुसार, जब गांव में पर्यावरण में खुले में मानव मल नहीं दिखे तथा हर घरेलू, सार्वजनिक व सामुदायिक स्तर पर सुरक्षित ढंग से मल निष्पादन हो, उसे तभी ओडीएफ माना जाएगा। इसके तहत मल निष्पादन की सुरक्षित तकनीक से आशय ऐसी तकनीक से है जिससे सतह की मिट्टी, भूजल अथवा सतही पानी प्रदूषित न हो तथा मल मक्खियों व जानवरों की पहुंच से दूर हो, बदबू व अप्रिय स्थितियां न हों।
ओडीएफ के लक्ष्य प्राप्ति हेतु गांव वालों के बर्ताव में बदलाव अधिक महत्त्वपूर्ण है केवल व्यक्तिगत शौचालयों पर बल देकर इसे हासिल नहीं किया जा सकता है।

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