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वैज्ञानिकों द्वारा 130 वर्ष बाद किलोग्राम (kg) की परिभाषा बदले जाने की घोषणा

वैज्ञानिकों द्वारा किलोग्राम की परिभाषा बदलने का निर्णय लिया गया है। 16 नवंबर 2018 को सर्वसम्मति से लिए गए इस निर्णय के तहत नई परिभाषा के परिणामस्वरूप पेरिस में 1889 में अपनाए गए प्लैटिनम अलॉय सिलिंडर का उपयोग बंद हो जाएगा। ये नए बदलाव 20 मई, 2019 से “वर्ल्ड मेट्रोलोजी डे” से प्रभावी होंगे।

वैज्ञानिकों का पक्ष था कि किलोग्राम को यांत्रिक और विद्युत चुम्बकीय ऊर्जा के आधार पर परिभाषित किया जाए।

मापतौल को लेकर 50 से अधिक देशों के प्रतिनिधियों के हाल ही में हुए एक सम्मलेन में 1 किलोग्राम वज़न के बराबर की वस्तु के प्रोटोटाइप में बदलाव करने तथा 1 किलोग्राम के बाट को और अधिक वैज्ञानिक बनाने हेतु ‘किब्बल बैलेंस फ़ॉर्मूला’ बनाने का निर्णय लिया गया है। प्लैंक कांस्टेंट द्वारा पुनर्परिभाषित इस नए सिस्टम में द्रव्यमान की यूनिट इलेक्ट्रिकल फोर्स के ज़रिए निर्धारित होती है। प्लैंक्स कांस्टेंट एक गणितीय मात्रा है।

मुख्य बिंदु:

  • वैज्ञानिकों द्वारा 130 वर्ष बाद किलोग्राम की परिभाषा बदने का निर्णय लिया गया है।
  • भविष्य में किलोग्राम को किब्बल या वाट बैलेंस का उपयोग करके मापा जाएगा। यह एक ऐसा उपकरण है जो यांत्रिक और विद्युत चुम्बकीय ऊर्जा का उपयोग करके सटीक गणना करता है।
  • इसके ज़रिये हल्की से हल्की तथा भारी से भारी वस्तु का द्रव्यमान बिल्कुल सटीक तरीके से निर्धारित किया जा सकेगा।
  • वर्तमान में इसे प्लेटिनम से बनी एक सिल के वज़न से परिभाषित किया जाता है जिसे ‘ली ग्रैंड के’ (Le Grand K) कहा जाता है। ऐसी एक सिल पश्चिमी पेरिस में ‘इंटरनेशनल ब्यूरो ऑफ़ वेट्स एंड मेज़र्स’ (बीआईपीएम) के पास वर्ष 1889 से रखी हुई है।
  • ऐसा होने पर किलोग्राम की परिभाषा न बदली जा सकेगी और न ही इसे कोई नुकसान पहुँचाया जा सकेगा। यह न केवल फ्रांस में बल्कि दुनिया में कहीं भी वैज्ञानिकों को एक किलो का सटीक माप उपलब्ध करवाएगा।

बदलाव के कारण:

  • किलो अंतरराष्ट्रीय मानक प्रणाली की 7 आधारिक या बेसिक यूनिट्स में से एक है; जिनमें से चार हैं- किलो, एंपियर (विद्युत प्रवाह), केल्विन (ताप) और मोल (पार्टिकल नंबर)।
  • किलोग्राम अंतिम एसआई बेस यूनिट है जो अभी तक एक फ़िज़ीकल ऑब्ज़ेक्ट द्वारा परिभाषित होता है।
  • वैज्ञानिकों का मत है कि फ़िज़ीकल ऑब्ज़ेक्ट सरलता से परमाणु को खो सकते हैं अथवा हवा से अणुओं को अवशोषित कर सकते हैं, इसी कारण इसकी मात्रा माइक्रोग्राम में कई बार बदली गई। अर्थात् किलोग्राम और स्तर मापने के लिए विश्वभर में प्रोटोटाइप का उपयोग किया जाता है। सामान्य जीवन में इसे मापा नहीं जा सकता है किन्तु वैज्ञानिक दृष्टिकोण के लिए यह समस्या पैदा कर सकता है।

क्या है ‘ली ग्रैंड के’ (Le Grand K)?

‘ली ग्रैंड के’ लंदन में निर्मित 90 प्रतिशत प्लेटिनम और दस प्रतिशत इरिडियम से बना है। 19वीं शताब्दी में फ्रांस के अंतर्राष्ट्रीय ब्यूरो ऑफ वेट एंड मेज़र्स (BIPM) के दफ्तर में एक कांच के कटोरे में प्लेटिनम इरीडियम धातु (Le Grand K) का एक टुकड़ा रखा गया था जिसे ‘ली ग्रैंड के’ कहा जाता है। यह 4 सेंटीमीटर बड़ी तथा एक सिलेंडर के आकार की धातु है। 1889 से लेकर अब तक एक किलोग्राम की माप इसी प्लेटीनियम-इरीडियम के अलॉय से बने सिलिंडर के द्रव्यमान से तय होती रही है। यह पश्चिमी पेरिस के सीमांत सेवरे में इंटरनेश्नल ब्यूरो ऑफ़ वेट्स एंड मेज़र्स (BIPM) के वॉल्ट में वर्ष 1889 से रखी हुई है।

द्रव्यमान क्या है?

द्रव्यमान किसी वस्तु अथवा पदार्थ के भीतर उसकी मात्रा को कहते हैं। द्रव्यमान की मात्रा किसी भी स्थान पर बदलती नहीं है। इसका अर्थ यह हुआ कि, धरती या चंद्रमा पर आपका भार बदल जायेगा पर द्रव्यमान एक ही रहेगा। ऐसा दोनों जगह अलग-अलग गुरुत्वाकर्षण के कारण होता है।

भारत के सन्दर्भ में:

नए अंतर्राष्ट्रीय फ़ॉर्मूले के अनुरूप देश में 1 किलोग्राम का नया बाट तैयार करने में तीन से चार वर्ष का समय लगेगा और इस कार्य पर लगभग 60 करोड़ रुपये की लागत आने का अनुमान है। उपभोक्ता मामलों और राष्ट्रिय भौतिकी प्रयोगशाला द्वारा प्राप्त जानकारी के अनुसार देश में एक ग्राम का बाट तैयार कर लिया गया है।

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