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Chief Election Commissioner Impeachment: मुख्य चुनाव आयुक्त पर महाभियोग और उसकी प्रक्रिया

Chief Election Commissioner Impeachment: मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) को हटाने की प्रक्रिया संवैधानिक रूप से जटिल और कठिन है लेकिन CEC के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव कब लाया जा सकता है और इसकी प्रक्रिया क्या है…

Chief Election Commissioner Impeachment: भारत निर्वाचन आयोग एक स्‍वायत्‍त संवैधानिक प्राधिकरण है जो भारत में नाव प्रक्रियाओं के संचालन के लिए उत्तरदायी है। यह निकाय भारत में लोकसभा, राज्यसभा, राज्य विधानसभाओं और देश में राष्ट्रपति एवं उपराष्ट्रपति के पदों के लिए चुनावों का संचालन करता है। मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) निर्वाचन आयोग का प्रमुख होता है जो स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित कराने के लिये ज़िम्मेदार होता है।

मूल रूप से, आयोग में केवल एक मुख्य चुनाव आयुक्त होता था। वर्तमान में, इसमें एक मुख्य चुनाव आयुक्त और दो चुनाव आयुक्त हैं।

भारत के संविधान के मुताबिक़, मुख्य चुनाव आयुक्त को हटाना एक जटिल प्रक्रिया है। उन्हें केवल महाभियोग के ज़रिये हटाया जा सकता है। यह प्रक्रिया वैसी ही है जैसे सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश को हटाने की होती है। दरअसल, चुनाव आयोग को राजनीतिक दबाव से सुरक्षित रखने हेतु मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) को हटाने की प्रक्रिया को जानबूझकर इतना कठिन बनाया गया है।

भारतीय संविधान में मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) और चुनाव आयुक्तों को हटाने की प्रक्रिया स्पष्ट रूप से तय की गई है। CEC को हटाने की कार्रवाई केवल तभी हो सकती है जब उनपर दुर्व्यवहार या अक्षमता सिद्ध हो। लेकिन CEC को हटाना अत्यंत जटिल और कठिन प्रक्रिया है, जिसमें संसद की मंजूरी और विशेष बहुमत की आवश्यकता होती है।

संवैधानिक उपबंध

मुख्य चुनाव आयुक्त को हटाने के लिए संविधान के अनुच्छेद 324(5) में प्रावधान किया गया है। इसके मुताबिक़, इसे सर्वोच्च न्यायालय के जजों को हटाने की प्रक्रिया के समान आधारों पर ही लागू किया जा सकता है। इस प्रक्रिया को सामान्यतः महाभियोग कहा जाता है।

महाभियोग की प्रक्रिया

CEC को पद से हटाने या महाभियोग की प्रक्रिया संसद में शुरू होती है। मुख्य चुनाव आयुक्त को पद से हटाने के लिए लोकसभा या राज्यसभा अर्थात् दोनों में से किसी एक सदन में प्रस्ताव लाया जा सकता है। महाभियोग के लिये संसद के दोनों सदनों लोकसभा और राज्यसभा में विशेष बहुमत के साथ प्रस्ताव पारित होने की ज़रूरत होती है। महाभियोग प्रस्ताव सदन में उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों के दो-तिहाई बहुमत से पारित होना चाहिये। इसके बाद प्रस्ताव दूसरे सदन में जाता है और वहाँ भी इसे दो-तिहाई बहुमत से पारित होना अनिवार्य है।

दोनों सदनों से महाभियोग प्रस्ताव पास होने के बाद ही यह राष्ट्रपति के पास जाता है जिसके बाद वह मुख्य चुनाव आयुक्त को हटाने का आदेश जारी कर सकते हैं।

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महाभियोग प्रक्रिया के चरण

प्रस्ताव का पेश किया जाना:

महाभियोग का प्रस्ताव संसद के किसी भी सदन यानी लोकसभा या राज्यसभा में लाया जा सकता है। इस प्रस्ताव के पारित होने के लिये लोकसभा में इसे कम-से-कम 100 सांसदों या राज्यसभा में 50 सांसदों के हस्ताक्षर के साथ प्रस्तुत करना होता है। लोकसभा अध्यक्ष या राज्यसभा के सभापति के पास इस प्रस्ताव को स्वीकार या अस्वीकार करने का अधिकार होता है। प्रस्ताव स्वीकार हो जाने की स्थिति में एक जाँच कमेटी का गठन किया जाता है।

जाँच कमिटी:

प्रस्ताव स्वीकार होने के बाद, संबंधित सदन के अध्यक्ष या सभापति द्वारा तीन सदस्यीय  जांच समिति का गठन किया जाता है। समिति की अगुवाई सुप्रीम कोर्ट के एक जज करते हैं, जबकि किसी भी हाईकोर्ट के एक चीफ जस्टिस और एक प्रतिष्ठित न्यायविद समिति में शामिल होते हैं। कमिटी, आरोपों की वैधता की जाँच करती है। इस जाँच समिति की रिपोर्ट के आधार पर संसद के दोनों सदनों में प्रस्ताव पर मतदान होता है।

दूसरे सदन में पारित:

प्रस्ताव पहले सदन में पारित हो जाने पर दूसरे सदन (लोकसभा या राज्यसभा) में भेजा जाता है। वहां भी इसे दो-तिहाई बहुमत से पारित होना आवश्यक है। मतलब ये कि दूसरे सदन से पारित होने के लिये यहाँ भी कम से कम दो-तिहाई सदस्यों का प्रस्ताव के पक्ष में वोट करना ज़रूरी है।

राष्ट्रपति की मंज़ूरी:

दोनों सदनों में प्रस्ताव पारित हो जाने के बाद इसे राष्ट्रपति के पास भेजा जाता है, जहाँ वह मुख्य चुनाव आयुक्त को हटाने का आदेश दे सकते हैं। अर्थात् दोनों सदनों से प्रस्ताव पारित होने के बाद राष्ट्रपति, CEC को हटाने के लिए अंतिम मंज़ूरी देते हैं।

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मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) को हटाना कठिन क्यों?

किसी मुख्य चुनाव आयुक्त को हटाना बेहद कठिन प्रक्रिया है, क्योंकि इसके लिए संसद के दोनों सदनों में भारी बहुमत की आवश्यकता होती है। यदि विपक्ष मुख्य चुनाव आयुक्त पर महाभियोग लाना चाहता है और उसके पास संसद में इतना संख्याबल नहीं है जो CEC को हटाने की आवश्यक दोनों सदनों में दो-तिहाई बहुमत की शर्त को पूरा कर सके तो ऐसे में यह और भी कठिन हो जाता है।

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