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चेन्नई में वैज्ञानिकों ने एंटीबायोग्रामोस्कोप नामक उपकरण विकसित किया

चेन्नई स्थित अन्ना विश्वविद्यालय के प्रोफेसरों की एक टीम ने हाल ही में एंटीबायोटिक प्रतिरोध से निपटने हेतु “एंटीबायोग्रामोस्कोप” नामक एक उपकरण का विकास किया है। यह उपकरण एंटीबायोटिक प्रतिरोध से निपटने में महत्त्वपूर्ण माना जा रहा है, जोकि आधुनिक स्वास्थ्य सेवा की सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है।

अन्ना यूनिवर्सिटी की इस टीम ने जैव प्रौद्योगिकी, मेडिकल इलेक्ट्रॉनिक्स, विनिर्माण, इलेक्ट्रॉनिक्स और संचार इंजीनियरिंग, इंस्ट्रूमेंटेशन तथा मेडिकल भौतिकी के प्रोफेसरों के संयुक्त प्रयास से एक आदर्श उदाहरण प्रस्तुत किया।

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“एंटीबायोग्रामोस्कोप”:

  • यह उपकरण छह घंटे के भीतर बैक्टीरिया के प्रतिरोधी उपभेदों की पहचान करता है, जिससे चिकित्सकों को सही दवा का चयन करने में मदद मिलती है। इस प्रक्रिया में कुल लागत 100-300 रूपए तक आती है। जबकि मौजूदा परीक्षणों में 500 से लेकर 2,000 रुपए तक का व्यय आता है।
  • मौजूदा विधि बैक्टीरिया को विकसित करने के लिये एक ठोस माध्यम का उपयोग करती है और एंटीबायोटिक दवाओं को उपयोग से पहले 24 घंटे लगते हैं। और एंटीबायोटिक प्रतिरोध का पता लगाने में 48 घंटे तक का समय लगता है। जबकि एंटीबायोग्रामोस्कोप में तरल माध्यम और दो चरणों का विलय पूरी प्रक्रिया को गति देता है।
  • यह प्रक्रिया स्वचालित है, सैंपल और माध्यम लोड होने के बाद किसी भी मानवीय हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है।
  • संबंधित डॉक्टरों और अस्पतालों को यह ईमेल द्वारा अंतिम रिपोर्ट सचित्र भेजेगा।
  • यह माध्यम की मात्रा को 20ml से 2ml करते हुए लागत को भी कम करता है।

विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) और विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (DST) द्वारा इस कार्य का समर्थन किया गया है।
Long-range sub-sonic cruise missile Nirbhay successfully test-fired:The Hindu

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