जलवायु आपातकाल घोषित करने वाला पहला देश बना ब्रिटेन
ब्रिटेन की संसद ने हाल ही में पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन को लेकर आपातकाल घोषित कर दिया है। इसके साथ ही ब्रिटेन ऐसा करने वाला विश्व का पहला देश बन गया है। ब्रिटेन में इस आशय का प्रस्ताव विपक्ष की ओर से प्रस्तुत किया गया था।
मुख्य बिंदु:
- जलवायु परिवर्तन पर आपात स्थिति घोषित करने की मांग कर रहे एक समूह के कार्यकर्ताओं ने मध्य लंदन में विरोध प्रदर्शन शुरू किया था।
- 11 दिनों तक चले इस विरोध प्रदर्शन में प्रदर्शनकारियों ने शहर की सड़कों को बंद कर दिया था। अब यह आंदोलन धीरे-धीरे जर्मनी और अन्य यूरोपीय देशों में भी फैल रहा है।
- ब्रिटिश सरकार द्वारा 2050 तक 80 प्रतिशत कार्बन उत्सर्जन कम करने का लक्ष्य रखा गया है। ब्रिटेन उन 18 विकसित देशों में एकमात्र ऐसा देश है जिसने पिछले एक दशक में सबसे कम कार्बन उत्सर्जन किया है।
- संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक़, जलवायु परिवर्तन से होने वाली तबाही से बचने के लिए हमारे पास सिर्फ बारह साल रह गए हैं। यदि इस समस्या का समाधान जल्दी नहीं किया गया तो धरती पर तबाही आ जाएगी।
- ब्रिटेन की संसद द्वारा जलवायु आपात स्थिति घोषित करने से पहले ही ब्रिटेन के दर्जनों कस्बों और शहरों ने जलवायु आपात स्थिति घोषित कर दी थी।
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आपातकाल के तहत जनता से अपील:
ब्रिटेन पर्यावरण और जलवायु को लेकर आपात स्थित घोषित करने वाला पहला देश बन गया है। सरकार के अनुसार, जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए वास्तव में काम करने का वक्त आ गया है। इस स्थिति में सहयोग के लिए लोगों से मुख्य रूप से अपील की गई है कि वे –
- कार की बजाय यथासंभव जगह पैदल, साइकिल या सरकारी यातायात से यात्रा करें
- कार को इलेक्ट्रॉनिक वाहनों से बदलें, इन्हें चार्ज कर चलाएं और ईंधन की खपत कम करें
- कार क्लब बनाकर कर सीमित कारों को अधिक से अधिक लोग इस्तेमाल करें
- हवाई सफर को भी नियंत्रित कर उत्सर्जन में कमी लायी जाए
- घरों में एलईडी बल्ब का अधिक इस्तेमाल करने से जलवायु को कम खतरा होता है
- कम बिजली की खपत और उच्च कार्यक्षमता वाले इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का इस्तेमाल करें
- थर्मोसेट को 19 डिग्री से ऊपर न रखें और पानी का तापमान 55 डिग्री सेल्सियस रखें
- जागरुकता अभियान चलाकर जलवायु परिवर्तन के खतरों के बारे में अधिक से अधिक लोगों को जागरूक करें
जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल (आइपीसीसी):
जलवायु परिवर्तन के आकलन के लिए बनाई गई अंतरराष्ट्रीय संस्था आईपीसीसी की स्थापना संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यकम तथा विश्व मौसम विज्ञान संगठन द्वारा 1988 में की गई थी। इसमें विश्व के विभिन्न देशों के वैज्ञानिकों के समूह कार्य करता हैं, वे जलवायु परिवर्तन का नियमित आकलन करते हैं। प्रत्येक 5-6 वर्ष उपरांत आईपीसीसी जलवायु परिवर्तन पर एक व्यापक रिपोर्ट प्रस्तुत करती है। वर्तमान में विश्व के 195 देश इसके सदस्य हैं। इसका मुख्यालय स्विट्ज़रलैंड के जिनेवा में स्थित है।
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पेरिस समझौता:
विदित हो कि 2016 में संयुक्त राष्ट्र द्वारा पारित पेरिस समझौता प्रस्ताव पर 197 देशों ने हस्ताक्षर किये थे। और सभी देश वैश्विक तापमान को कम करने के लिए कार्बन का उत्सर्जन कम करने पर सहमत हुए थे। इस समझौते का मुख्य उद्देश्य ग्लोबल तापमान 2 डिग्री सेल्सियस तक पहुंचाना और उद्योगों का तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस से अधिक नहीं पहुंचने देना रखा गया था।
जलवायु परिवर्तन:
ग़ौरतलब है कि जलवायु परिवर्तन के खतरों के बारे में वैज्ञानिक लगातार आगाह करते आ रहे हैं। औद्योगिक क्रांति के बाद से पृथ्वी का औसत तापमान साल दर साल बढ़ रहा है। जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल (आइपीसीसी) की रिपोर्ट ने पहली बार इससे आगाह किया था। जलवायु परिवर्तन के दुष्परिणामों के रूप में प्राकृतिक आपदाओं की आवृत्ति और प्रवृत्ति बढ़ चुकी है, मौसम बदल रहे हैं।
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