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ओडिशा की कंधमाल हल्दी को मिला जीआई टैग

ओडिशा के कंधमाल ज़िले की कंधमाल हल्दी को विशिष्ट भौगोलिक पहचान के लिए 1 अप्रैल, 2019 को भौगोलिक संकेतक (जीआई) टैग प्रदान किया गया। यह हल्दी यहां के आदिवासी किसानों द्वारा उगाई जाती है। कंधमाल ज़िले की लगभग 15 फ़ीसदी आबादी हल्दी की खेती से जुड़ी हुई है। जीआई टैग प्राप्त हो जाने से इस हल्दी को अब विश्व बाज़ार में एक स्वतंत्र स्थान मिल जायेगा।

इसके पंजीकरण आवेदन को वस्तु भौगोलिक संकेतक (पंजीकरण एवं संरक्षण) अधिनियम की धारा 13 की उपधारा 1 के तहत मंज़ूरी दी गई है। इसके पंजीकरण के लिए कंधमाल अपेक्स स्पाइसेज़ एसोसिएशन फॉर मार्केटिंग द्वारा दिसंबर 2018 में आवेदन किया गया था।

कंधमाल हल्दी:

  • कंधमाल हल्दी का रंग सुनहरा पीला होता है और यह हल्दी की अन्य किस्मों से भिन्न है।
  • इस हल्दी की ख़ास बात यह है कि इसके उत्पादन में किसानों द्वारा किसी तरह के कीटनाशक का प्रयोग नहीं किया जाता है।
  • स्वास्थ्य के लिए काफी उपयोगी यह कंधमाल हल्दी यहां के जनजातीय लोगों की प्रमुख नकदी फसल है।
  • शासन तंत्र द्वारा भी कंधमाल हल्दी को स्वतंत्रता का प्रतीक अथवा अपनी उपज माना जाता है।
  • मूल रूप से कंधमाल के आदिवासियों द्वारा उगाई जाने वाली यह हल्दी अपनी औषधीय विशेषताओं के लिए प्रसिद्ध है।

भौगोलिक संकेत (जीआई टैग):

भौगोलिक संकेत किसी भी उत्पाद के लिए वह चिन्ह होता है जो उसकी विशेष भौगोलिक उत्पत्ति, गुणवत्ता और पहचान के लिए दिया जाता है और यह सिर्फ उसकी उत्पत्ति के आधार पर होता है। जीआई उत्पाद दूरदराज़ के क्षेत्रों में किसानों, बुनकरों शिल्पों और कलाकारों की आय को बढ़ाकर ग्रामीण अर्थव्यवस्था को फायदा पहुंचा सकते हैं। केरल स्थित इडुक्की ज़िले के पारंपरिक मरयूर गुड़, दार्जिलिंग चाय, महाबलेश्वर स्ट्रोबैरी, जयपुर की ब्लूपोटेरी, बनारसी साड़ी और तिरूपति के लड्डू को भी जीआई टैग प्रदान किया जा चुका है। हाल ही में भारतीय कॉफ़ी कुर्ग अरेबिका (Coorg Arabica) सहित कॉफ़ी की पांच किस्मों को भी भौगोलिक संकेतक प्रदान किया गया है।

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