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कंगला टोंगबी की ऐतिहासिक लड़ाई की हीरक जयंती मनाई गई

द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान मणिपुर के कंगला टोंगबी में हुए भीषण युद्ध की याद में 7 अप्रैल, 2019 को इसकी हीरक जयंती के तौर पर मनाया गया। सैनिकों के सम्मान में प्रत्येक वर्ष 7 अप्रैल को कंगला टोंगबी यादगार समारोह मनाया जाता है। एडवांस ऑर्डिनेन्‍स डिपो (एओडी) के 221 आयुध कर्मियों द्वारा 6/7 अप्रैल, 1944 की रात को लड़े गए कंगला टोंगबी के युद्ध को द्वितीय विश्व युद्ध के भयंकर युद्धों में से एक माना जाता है।

द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान हुए इस भयंकर युद्ध में 221 अग्रिम आयुध डिपो के आयुध कार्मिकों के सर्वोच्‍च बलिदान को सम्‍मान देने हेतु इम्फाल के निकट कंगला टोंगबी युद्ध स्मारक पर सेना आयुध कोर द्वारा इस दिन को प्लेटिनम जयंती के तौर पर मनाया जाता है।

कंगला टोंगबी युद्ध:

  • 6/7 अप्रैल, 1944 की रात को जापानी बलों ने तीन ओर से आक्रामक आक्रमण करके इम्फाल और इसके आसपास के क्षेत्रों पर कब्जा करने की एक योजना बनाई थी।
  • इम्फाल तक अपनी संचार लाइन का विस्तार करने के प्रयास के तहत, 33वीं जापानी डिवीजन ने म्यांमार स्थित 17वीं  भारतीय डिवीजन के मार्ग को अवरुद्ध करते हुए मुख्य कोहिमा-मणिपुर राजमार्ग पर अपना अधिकार कर लिया और कंगला टोंगबी की ओर आगे बढ़ना शुरू कर दिया।
  • कंगला टोंगबी में तैनात 221 एओडी की स्थिति तकनीकी दृष्टि से बिल्कुल भी मज़बूत नहीं थी। इस छोटी लेकिन दृढ़ टुकड़ी ने अग्रिम जापानी बलों को रोकने के लिए उनके विरुद्ध कड़ा प्रतिरोध किया।
  • 6 अप्रैल, 1944 को डिपो से चार हज़ार टन गोला-बारूद, आयुध और अन्य युद्ध के सामानों को हटाने के आदेश मिले।
  • 6/7 अप्रैल 1944 की रात को, जापानियों ने डिपो पर भारी हमला किया, लेकिन डिपो के निचले भाग की ओर एक गहरे नाले को एक सुरक्षा कवर के लिए बंकर के तौर पर उपयोग करते हुए यहां से दुश्‍मन पर भारी गोलीबारी की गई जिसने दुश्‍मन को हिला दिया और उसे अपने कदम वापस खींचने पर मजबूर कर दिया।
  • डिपो की रक्षा के लिए एक आत्मघाती दस्ता तैयार किया गया।
  • इस हमले में महत्‍वपूर्ण भूमिका निभाने वाली ब्रेन गन को हवलदार और क्‍लर्क स्टोर, बसंत सिंह ने बनाया था।
  • वीरता के इस कार्य के लिए, मेजर बॉयड को मिलिट्री क्रॉस (एमसी), कंडक्टर पक्केन को मिलिट्री मेडल (एमएम) और हवलदार/क्लर्क स्टोर, बसंत सिंह को भारतीय विशिष्ट सेवा मेडल (आईडीएसएम) से सम्मानित किया गया।

विदित हो कि कंगला टोंगबी युद्ध स्मारक या कंगला टोंगबी वॉर मेमोरियल, 221 एओडी, 19 के आयुध कर्मियों की कर्तव्य के प्रति अगाध श्रद्धा का एक मौन प्रमाण होने के साथ-साथ उनके सर्वोच्च बलिदान का भी प्रमाण है। यह स्‍मारक विश्‍व को यह बताता है कि आयुध कर्मी पेशेवर कार्मिक होने के अलावा युद्ध के समय में भी एक कुशल सैनिक के रूप से किसी से पीछे नहीं हैं।

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