नाइजीरिया में युवा बना रहे प्लास्टिक-बोतलों से मकान, भूकंप भी होगा बेअसर
सालों से बेरोज़गारी झेल रहे नाइजीरिया के युवाओं ने अपनी बेरोज़गारी और प्लास्टिक के कचरे की समस्या से निपटने का एक अनोखा तरीका निकाला है। यहाँ के युवा बेकार प्लास्टिक की बोतलों में मिटटी-कंकड़ भरकर इससे मकान और पानी की टंकियां बना रहे हैं। इससे तमाम लोगों को रोज़गार भी मिल रहा है। पर्यावरण-अनुकूल इन घरों के बनाने में ख़र्च भी बहुत कम आ रहा है। इस प्रकार के मकान बनाने वाले इन लोगों का दावा है की ये घर टिकाऊ साबित होंगे।
विशेषज्ञों के अनुसार, प्लास्टिक की बोतलों से बने ये भूकंप-रोधी मकान 7.3 तीव्रता वाले भूकंप तक को सहने में सक्षम हैं।
निर्माण प्रक्रिया:
ये मकान ठीक वैसे ही बनाये जाते हैं जैसे कि ईंट, पत्थर, सीमेंट या मिटटी के मकान बनते हैं। प्लास्टिक की इन बोतलों को एक के ऊपर एक रखकर इनकी चिनाई की जाती है, फिर बाद में इन्हें नायलोन की डोरी से बाँध दिया जाता है और सभी हिस्सों को इसी तरह बना कर निर्माण प्रक्रिया पूरी की जाती है। इस प्रक्रिया से बनने वाले मकानों पर काफी कम ख़र्च आता है। विशेषज्ञों के अनुसार, इस तरीक़े से 600 वर्ग फीट तक का मकान बनाने में लगभग साढ़े तीन लाख रुपए तक का ख़र्च आता है।
युवाओं को मिल रहा रोज़गार:
नाइजीरिया में पिछले एक दशक में बेरोज़गारी तेज़ी से बढ़ी है। इस प्रक्रिया से मकान बनाने के लिए पहले ख़ाली बोतलों में मिटटी व कंकड़-पत्थर को मिला कर भरा उनमें जाता है जिसमें काफी मात्रा में श्रम शक्ति की आवश्यकता होती है। इस अनोखी तकनीक से ना केवल लोगों को रोज़गार मिल रहा है बल्कि सस्ते व टिकाऊ घर भी मिल रहे हैं।
पर्यावरण संरक्षण में सहायक:
वैज्ञानिकों का कहना है की प्लास्टिक की एक बोतल को गलने में क़रीब 450 साल का समय लगता है। नाइजीरिया की जनसंख्या लगभग 19 करोड़ है और यहाँ हर साल क़रीब 3.2 टन कचरा निकलता है जिनमें से प्लास्टिक की बोतलें यहाँ जल निकासी में एक बड़ी बाधा बन रही हैं। यह तकनीक इस समस्या से निपटने में सहायक सिद्ध हो सकेगी।