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पहली बार आयरिश पत्रकार हर्निमैन की किताब से दुनिया को पता चला था जलियांवाला कांड

आज से ठीक सौ साल पहले 13 अप्रैल, 1919 के दिन अंग्रेज़ अफ़सर जनरल डायर ने जलियांवाला बाग़ में बैसाखी के अवसर पर जमा हुए हज़ारों निहत्थे लोगों पर गोलियां चलवाई थीं। इस दुर्घटना में एक हज़ार से ज़्यादा लोग मारे गए थे। इस भयावह नरसंहार को अमेरिका और ब्रिटेन के अख़बारों में दंगा बताकर छापा जाता रहा।

दुनिया को इस गोलीकांड की हक़ीक़त तब पता चली जब पहली बार बॉम्बे क्रोनिकल के संपादक बेंजामिन गाय हर्निमैन (Benjamin Guy Horniman) ने इस घटना की सही ख़बर और तस्वीरें ब्रिटेन के द हेराल्ड अखबार को दीं। हालांकि इस बात से नाराज़ होकर ब्रिटिश हुकूमत ने हर्निमैन को दो साल और चश्मदीद गोवर्धन दास को तीन साल की सज़ा सुनाई।

जेल में रहकर लिखी किताब अमृतसर एंड आवर ड्यूटी टू इंडिया’:

आयरलैंड मूल के पत्रकार बी.जी. हर्निमैन ने 1920 में जेल में रहते हुए ‘अमृतसर एंड आवर ड्यूटी टू इंडिया’ (Amritsar and Our Duty to India) नामक किताब लिखी। इस किताब में हर्निमैन ने जनरल डायर को अत्याचारी बताते हुए इस नरसंहार की तुलना कांगो अत्याचार और फ़्रांस व बेल्जियम में जर्मनी द्वारा किये गए नरसंहार से की और इस दुर्घटना को ब्रिटिश शासन पर एक अमिट धब्बा कहा।

हर्निमैन ने अपनी एक अन्य रिपोर्ट में कहा है कि यह नरसंहार उसी दिन ख़त्म नहीं हुआ था बल्कि इसके बाद छह हफ़्तों तक मार्शल लॉ लागू रहा और इस दौरान लोगों को बेवजह जेलों में ठूंसा जाता रहा। गुजरांवाला में लोगों पर बम फेंके गए और गोलियां चलाई गईं। लोगों को निर्वस्त्र कर घुटने के बल बैठाकर मारा गया।

अपनी किताब में हर्निमैन ने लिखा है कि “इंग्लैंड के लोगों को शायद ही कभी इस बात का विश्वास दिलाया जा सकेगा कि उनके एक जनरल ने निहत्थे लोगों को बिना चेतावनी दिए उन पर गोलियां चलवाई थीं। और वह उन लोगों को मरते हुए तब तक देखता रहा जब तक उसके सैनिकों की गोलियां ख़त्म नहीं हो गईं”। उन्होंने लिखे है कि यह घटना ब्रिटेन के ऊपर कभी ना मिटने वाला धब्बा है।

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