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केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा पनबिजली क्षेत्र को बढ़ावा देने के उपायों को मंज़ूरी

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्‍यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 07 मार्च, 2019 को पनबिजली क्षेत्र को बढ़ावा देने के उपायों को मंज़ूरी दी। इनमें गैर-सोलर अक्षय ऊर्जा क्रय बाध्यता (आरपीओ) के हिस्से के रूप में बड़ी पनबिजली परियोजनाओं की घोषणा शामिल है।

 

स्वीकृत उपाय:

  • इन उपायों की अधिसूचना के बाद आरंभ बड़ी पनबिजली योजनाएं गैर-सोलर अक्षय ऊर्जा क्रय बाध्यता के तहत पनबिजली योजनाएं इन में शामिल होंगी (लघु पनबिजली परियोजनाएं इनमें पहले से ही शामिल हैं)।
  • बड़ी पनबिजली योजनाओं की घोषणा अक्षय ऊर्जा स्रोत के रूप में की जायेगी (मौजूदा प्रचलन के अनुसार, केवल 25 मेगावॉट से कम क्षमता वाली पनबिजली परियोजनाओं को अक्षय ऊर्जा के रूप में श्रेणीबंध किया गया है)।
  • पनबिजली क्षेत्र में अतिरिक्त परियोजना क्षमता के आधार पर विद्युत मंत्रालय द्वारा बड़ी पनबिजली परियोजनाओं के वार्षिक लक्ष्यों के बारे में अधिसूचित किया जायेगा साथ ही बड़ी पनबिजली परियोजनाओं के संचालन के लिये शुल्क नीति और शुल्क नियमनों में आवश्यक संसोधन किये जायेंगे।
  • सड़कों और पुलों जैसी आधारभूत सुविधाओं के निर्माण में आर्थिक लागत पूरी करने के लिये बजटीय सहायता देना; मामले के आधार पर यह वास्तविक लागत, प्रति मेगावॉट 1.5 करोड़ रूपये की दर से अधितकम 200 मेगावॉट क्षमता वाली परियोजनाओं और प्रति मेगावॉट 1.0 करोड़ रूपये की दर से 200 मेगावॉट से अधिक क्षमता वाली परियोजनाओं हेतु हो सकती है।
  • परियोजना काल को 40 वर्ष तक बढ़ाने के बाद शुल्क के बैक लोडिंग द्वारा शुल्क निर्धारित करने के लिये डेवलपरों को लचीलापन प्रदान करने, ऋण भुगतान की अवधि को 18 वर्ष तक बढ़ाने और 2 प्रतिशत शुल्क बढ़ाने सहित शुल्क को युक्तिसंगत बनाना।
  • मामले के आधार पर पनबिजली परियोजनाओं फ्लड मोडरेशन घटक वित्तपोषण के लिये बजटीय सहायता प्रदान करना। ।

 

रोज़गार सृजन सहित पड़ने वाले प्रमुख प्रभावः

  • अधिकांश पनबिजली परियोजनाएं हिमालय की ऊचाइयों और पूर्वोत्तर क्षेत्र में स्थित हैं, अतः विद्युत क्षेत्र में प्रत्यक्ष रोज़गार मिलने से इस क्षेत्र का सामाजिक-आर्थिक विकास सुनिश्चित होगा।
  • इससे परिवहन, पर्यटन और अन्य छोटे कारोबारी क्षेत्र में अप्रत्यक्ष रोज़गार/उद्यमिता के अवसर भी उपलब्ध होंगे।
  • इससे सौर और पवन जैसे ऊर्जा स्रोतों से वर्ष 2022 तक लगभग 160 गीगावॉट क्षमता का एक स्थाई ग्रिड उपलब्ध हो जायेगा।

 

पर्यावरण अनुकूल होने के साथ-साथ, पनबिजली की अन्य कई महत्वपूर्ण विशेषताएं हैं। पनबिजली क्षेत्र से रोज़गार के अवसर मिलने और पर्यटन क्षेत्र का विकास होने से संपूर्ण क्षेत्र का सामाजिक-आर्थिक विकास होता है। साथ ही, इससे जल सुरक्षा, सिंचाई सुविधा और बाढ़ में कमी होने जैसे लाभ भी मिलते है। विदित हो कि भारत में लगभग 1,45,320 मेगावॉट पनबिजली क्षमता की संभावना है, किंतु अब तक केवल लगभग 45,400 मेगावॉट का ही इस्तेमाल हो रहा है। पिछले 10 वर्षों में पनबिजली क्षमता में केवल  लगभग 10,000 मेगावॉट की वृद्धि की गयी है। कुल क्षमता में पनबिजली की हिस्सेदारी वर्ष 1960 के 50.36 फ़ीसदी से घटकर 2018-19 में लगभग 13 फ़ीसदी रह गयी है।

भारत द्वारा वर्ष 2022 तक सौर और पवन बिजली क्षमता में 160 गीगावॉट जोड़ने और वर्ष 2030 तक गैर-फोसाइल ईंधन स्रोतों से कुल क्षमता का 40 फ़ीसदी जोड़ने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।

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