जानें.. भारत में नोटबंदी (Demonetization) का इतिहास… 1946 से 2023 तक
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की वह घोषणा तो आप सभी को याद होगी, जब 8 नवंबर, 2016 को रात रात 8 बजे देश को संबोधन करते हुए प्रधानमंत्री ने देश में अचानक विमुद्रीकरण या demonetization की घोषणा करके देश में हाई करेंसी वाले 500 और 1000 रुपए के नोटों को बैन या विमुद्रिकृत कर दिया था।
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इस घोषणा के बाद देश में सबसे ज़्यादा इस्तेमाल होने वाले 500 और 1000 रुपये के ये नोट एकदम चलन से बाहर हो गए लेकिन इनके बदले 2000, 500 और 200 रुपए के नए करेंसी नोट मार्केट का हिस्सा बन गए ताकि अर्थव्यवस्था में करेंसी की ज़रूरत को पूरा किया जा सके।
ये पहली बार था जब देश में 2000 रुपए का नोट जारी किया गया। हालाँकि, साल 2023 में 2 हज़ार रुपए के इस नोट को भी चलन से बाहर कर दिया गया है।
सरकार के 2016 के डीमोनेटाइज़ेशन के फैसले से अगले कई महीनों तक देश में उथल-पुथल मची रही। ज़्यादातर लोगों को लगा कि ऐसा देश में पहली बार हुआ है जब इस तरह की नोटबंदी की गई है। लेकिन आपको जानकार हैरानी होगी कि भारत में नोटबंदी का होना और किसी नोट को चलन से बाहर कर देना कोई नई बात नहीं है।
विमुद्रीकरण (Demonetization) की परिभाषा
दरअसल, विमुद्रीकरण (Demonetisation), जिसे आपकी और हमारी भाषा में नोटबंदी कहा जाता है, किसी करेंसी यूनिट से एक लीगल टेंडर के रूप में उसके दर्जे को छीन लेना या हटा देना होता है।
विमुद्रीकरण मुद्रा इकाइयों के ‘लीगल टेंडर स्टेटस’ या कानूनी निविदा स्थिति को हटाने के कार्य के रूप में परिभाषित करता है। ऐसा आमतौर पर तब होता है जब किसी राष्ट्रीय मुद्रा में परिवर्तन होता है। विमुद्रीकृत मुद्रा किसी भी तरह के लेन-देन के लिए वैध मुद्रा के रूप में इस्तेमाल नहीं की जा सकती है। इसमें अक्सर किसी विशेष प्रकार की मुद्रा की कानूनी वैधता समाप्त कर दी जाती है। यह किसी भी देश के लिये महत्त्वपूर्ण होता है क्योंकि यह आर्थिक लेनदेन में विनिमय माध्यम को सीधे तौर पर प्रभावित करता है। विमुद्रीकरण को प्रायः कर प्रशासन के एक उपाय के रूप में देखा जाता है।
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क्या 2016 से पहले भी की जा चुकी है नोटबंदी?
दरअसल, 2016 से पहले और बाद में भी भारत में ऐसे निर्णय लिये जा चुके हैं जब इस तरह से बड़े नोटों को बंद किया गया है। और एक बार तो भारत की आज़ादी से पहले भी देश में नोटबंदी की गई थी।
आज़ादी से पहले 1946 की नोटबंदी (Demonetization)
साल 1938 में भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने देश में पहली बार 10 हज़ार रुपए का नोट प्रिंट किया। ये उस समय भारत का सबसे ज़्यादा मूल्य वाला करेंसी नोट था। इस समय देश में अंग्रेज़ी हुकूमत थी।
इसके कुछ समय तक तो सब ठीक चलता रहा। लेकिन कुछ ही समय बाद समस्या शुरू होने लगी। इसके बाद ये नोट ज़्यादा दिनों तक नहीं चल सका और 8 साल बाद ही यानी 1946 में अंग्रेज़ी सरकार ने इसे बंद करने का फ़ैसला ले लिया।
1946 में ही आज़ादी से पहले देश में पहली बार नोटबंदी की गई थी। दरअसल, तब ब्रिटिश इंडिया के तत्कालीन गवर्नर जनरल सर आर्चीबाल्ड वॉवेल (Archibald Wavell) ने 12 जनवरी, 1946 को सभी हाई करेंसी वाले बैंक नोट्स को डिमोनेटाइज़ करने का आदेश दे दिया। 12 जनवरी को दो अध्यादेश जारी किए गए जिसमें 500, 1000 और 10,000 रुपये के नोट बंद किए गए। ब्रिटिश सरकार ने तब RBI गवर्नर रहे सर सी.डी. देशमुख (Sir CD Deshmukh) के परामर्श से 500 रुपये और उससे ज़्यादा मूल्य के सभी नोटों को बंद करने का फैसला किया था।
सर आर्चीबाल्ड के आदेश के बाद 26 जनवरी, 1946 को 500, 1,000 और 10,000 रुपये के नोट चलन से बाहर हो गए।
RBI के दस्तावेज़ों के मुताबिक़, तत्कालीन भारत सरकार ने उस समय फ्रांस, बेल्जियम और यूके सहित कई देशों में इसी तरह की कार्रवाई का आकलन किया था, जिसके बाद सरकार द्वारा जनवरी 1946 में देश में हाई करेंसी नोटों के विमुद्रीकरण का फैसला लिया गया।
सरकार ने अपने इस क़दम की वजह उस समय चल रहे द्वितीय विश्व युद्ध और बढ़ती काला बाज़ारी को बताया। यह निर्णय काले धन को ख़त्म करने के मक़सद से लिया गया था। माना जा रहा था कि व्यापरियों द्वारा भारी संपत्ति जमा की जा रही थी और जिससे कर चोरी की समस्या भी बढ़ रही थी। इसी समस्या के कारण सरकार को यह क़दम उठाना पड़ा। इसी के साथ 1946 में देश में 500, 1,000 और 10 हज़ार रुपए के नोट बंद हो गए।
सर सी.डी. देशमुख
सर सी.डी. देशमुख का पूरा नाम चिंतामन द्वारकानाथ देशमुख था। यह RBI के पहले भारतीय गवर्नर थे। इनसे पहले दो गवर्नर Sir Osborne Smith और Sir James Taylor विदेशी थे। सी.डी. देशमुख को 1943 में RBI का गवर्नर नियुक्त किया गया था। 1944 में अपने कार्यकाल के दौरान इन्होंने ब्रेटन वुड्स वार्ता में भारत का प्रतिनिधित्व भी किया था।
आज़ादी के बाद भारत की पहली नोटबंदी (demonetization)
1978 की नोटबंदी
यह भारत में नोटबंदी का दूसरा दौर था।
1947 में भारत को आज़ादी मिल चुकी थी और इसके कुछ सालों बाद यानी वर्ष 1954 में RBI भारत में एक बार फिर हाई करेंसी नोटों को चलन में ले आई। अब देश में 1,000, 5,000 और 10,000 रुपये के करेंसी नोट शुरू कर दिये गए। इसके बाद दो दशक से भी ज़्यादा वक़्त तक इन हाई करेंसी नोट्स का इस्तेमाल भारत में व्यापक रूप से होता रहा।
लेकिन इन नोटों के प्रचलन ने एक बार फिर काले धन जैसी समस्या उजागर कर दी।
वांचू समिति
1970 के दशक की शुरुआत में सरकार द्वारा प्रत्यक्ष कर (direct tax) पर एक जाँच समिति का गठन किया गया। चूँकि इसके अध्यक्ष भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश कैलाश नाथ वांचू थे इसलिए इस समिति को ‘वांचू समिति’ कहा गया। वांचू समिति ने अपनी रिपोर्ट में काले धन के प्रसार को उजागर करने और उसका मुकाबला करने के उपाय के रूप में कुछ नोटों के विमुद्रीकरण का सुझाव दिया।
साल 1978 में केंद्र में जनता पार्टी की सरकार थी और मोरारजी देसाई देश के प्रधानमंत्री थे। सरकार ने समिति की सिफारिशों के साथ-साथ काले धन और नकली नोटों जैसी समस्या का समाधान करने के लिए एक बार फिर नोटबंदी करने का निर्णय लिया।
इसके बाद RBI ने हाई करेंसी नोट वापस लेने का अध्यादेश बनाया, जिसे तत्कालीन राष्ट्रपति नीलम संजीवा रेड्डी ने भी मंज़ूरी दे दी।
इसी के साथ सरकार ने 16 जनवरी, 1978 को High Denomination Bank Note (Demonetisation) Act, 1978 के तहत 1,000, 5,000 और 10,000 रुपये के नोट बंद कर दिए। आकाशवाणी के ज़रिये लोगों को इसकी सूचना दी गई। नागरिकों को बैंकों से उच्च मूल्यवर्ग के इन नोटों को बदलने के लिए 24 जनवरी, 1978 तक का समय दिया गया था।
हालाँकि, रिपोर्ट्स के मुताबिक़ नोटबंदी के इस क़दम का जनता पर ज़्यादा असर नहीं पड़ा क्योंकि उस समय बड़े नोट ज़्यादा सर्कुलेशन में नहीं थे और देश की कुल राशि में इन तीनों बड़े नोटों का कुल सर्कुलेशन 2 फीसदी से भी कम था।
इसी को लेकर तत्कालीन वित्त मंत्री एचएम पटेल ने फरवरी 1978 में अपने बजट भाषण में कहा कि यह निर्णय सरकार द्वारा अवैध लेन-देन को नियंत्रित करने और असामाजिक तत्वों के ख़िलाफ़ उठाए गए उपायों की एक श्रृंखला का हिस्सा था। इसी के साथ 1946 के बाद अब 1978 में ये दूसरी बार था जब देश में नोटबंदी हुई।
पुनः चलन में आए बड़े करेंसी नोट
इसके बाद के सालों में RBI द्वारा समय-समय पर कई बड़े नोट जारी किये गए। अक्तूबर 1987 में 500 रुपये का नोट प्रचलन में आया तो नवंबर 2000 में 1,000 रुपये के नोट की वापसी हुई।
लेकिन अब सवाल ये था कि जब अर्थव्यवस्था में भ्रष्टाचार और काले धन आदि की समस्या का हवाला देकर पहले हाई करेंसी नोट्स के प्रचलन को बंद कर दिया गया तो अब एक बार फिर से 500 और 1000 रुपये के नोट क्यों जारी किए गए?
दरअसल, 500 और 1000 रुपये के नोटों को जारी करने का मक़सद, देश में बढ़ती मुद्रास्फीति को नियंत्रित करना और कमोडिटी की कीमतों को कम करना था। इसके अलावा, नए लॉन्च किए गए करेंसी नोटों में देश में नकली करेंसी नोटों पर नज़र रखने के लिए कुछ अतिरिक्त/नई सुरक्षा सुविधाएँ भी होने का दावा किया गया। दोनों ही करेंसी नोट्स मामले में सरकार ने प्रचलन में बैंक नोटों की मात्रा को नियंत्रित करने के साधन के रूप में इसे एक उचित क़दम ठहराया।
21वीं शताब्दी की नोटबंदी : 8 नवंबर, 2016
2016: 500 और 1000 रुपये के नोट बंद
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 8 नवंबर, 2016 को रात आठ बजे देश में नोटबंदी का ऐलान किया था। तब 500 और 1000 रुपए के नोट चलन से बाहर कर दिए गए थे। इस नोटबंदी का मक़सद भी काले धन की समस्या से निपटना, जाली नोटों पर अंकुश लगाना और टेरर फंडिंग आदि को रोकना बताया गया।
घोषणा के मुताबिक़, जिन लोगों के पास पुराने 500 और 1000 रुपए के नोट थे उन्हें बैंकों से इन्हें नए नोटों से बदलने की सुविधा और समय-सीमा दी गई।
सरकार के इस फैसले से देश में काफी अफरा-तफरी का माहौल हो गया। लोगों को पुराने नोट जमा करने और नए नोट हासिल करने के लिए बैंकों में लंबी लाइनों में लगना पड़ रहा था और काफी मशक्क़त का सामना करना पड़ रहा था।
इस बार की नोटबंदी का जनता पर गहरा असर पड़ा क्योंकि नोटबंदी के समय देशभर में प्रचलित कुल मुद्रा की मात्रा 17.7 लाख करोड़ रुपये थी। इस कुल मात्रा में से 500 और 1000 रुपये के कुल 15 लाख 44 हज़ार करोड़ रुपये के नोट चलन में थे जिसमें से नोटबंदी के चलते क़रीब 15 लाख 28 हज़ार करोड़ रुपये के यानी क़रीब 99 प्रतिशत से ज़्यादा नोट बैंकिंग सिस्टम में वापस आ गए थे।
कई लोगों ने सरकार के इस फैसले का विरोध भी किया और मामला सुप्रीम कोर्ट तक जा पहुँचा। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने सरकार के इस क़दम को सही ठहराया और कहा कि केंद्र सरकार को नोटबंदी का अधिकार है, जो उसे संविधान और RBI एक्ट ने दिया है।
इससे पहले दो बार डिमोनेटाइज़ेशन के इस अधिकार का इस्तेमाल हो चुका था और 2016 में ये तीसरा मौका था।
2023 में 2000 रुपए के नोट को किया चलन से बाहर
2016 में देश में 2000 रुपए का नया नोट जारी किया गया था। इसे RBI अधिनियम, 1934 की धारा 24(1) के तहत पेश किया गया था। लेकिन इसके क़रीब सात साल बाद 2000 रुपए के इस नोट को भी बंद कर दिया गया। RBI ने 19 मई, 2023 को एक आदेश जारी कर ₹2,000 के बैंक नोटों को सर्कुलेशन से बाहर करने का ऐलान कर दिया। लोगों द्वारा इसे Demonetisation 2.0 कहा गया।
लोगों को इन नोटों को बदलने या जमा करने के लिए 30 सितंबर, 2023 तक का समय दिया गया था।
क्यों बंद किया गया 2000 रुपये का नोट?
2000 रुपये के नोट को लाने ख़ास मक़सद 500 और 1000 रुपये के नोटों की वैधता ख़त्म करने के बाद अर्थव्यवस्था की मुद्रा आवश्यकता को तेज़ी से पूरा करना था। आसान भाषा में समझें, तो इसके पीछे मक़सद था उस समय नोटबंदी की वजह से 500 और 1000 रुपये के जो नोट चलन से हटाए गए थे, बाज़ार और अर्थव्यवस्था पर उनके असर को जितना हो सके कम करना। इस मक़सद के पूरा होने के साथ ही और जब लोगों की करेंसी की ज़रूरत पूरी करने के लिए दूसरे मूल्यवर्ग के नोट बैंक और मार्केट में पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हो गए, तो 2000 रुपए के नोटों को चलन में लाने का मकसद पूरा हो गया।
इसके बाद 2018-19 में 2000 रुपये के नोटों की छपाई बंद कर दी गई। ₹2000 के ज़्यादातर बैंकनोट 31 मार्च, 2017 से पहले जारी किए गए थे। इस बारे में भारतीय रिज़र्व बैंक ने कहा कि इन कारणों के अलावा RBI की Clean Note Policy के मद्देनज़र ₹2000 के नोटों को चलन से वापस लेने का निर्णय लिया गया है।
कुछ प्रमुख तथ्य-
- वैध मुद्रा या legal tender वह सिक्का अथवा बैंकनोट होता है जो कानूनी रूप से कर्ज अथवा देयता के बदले दी जा सकती है।
- भारत में वर्तमान में जारी ₹10, ₹20, ₹50, ₹100 आदि मूल्यवर्ग के नोटों को बैंकनोट कहा जाता है क्योंकि ये भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा जारी किए जाते हैं।
- स्वतंत्र भारत द्वारा जारी पहला बैंकनोट एक रुपए का नोट था, जिसे 1949 में जारी किया गया था।
- भारतीय रिज़र्व बैंक (आरबीआई) द्वारा अब तक का सबसे बड़ा करेंसी नोट 10000 रुपये का था।
- RBI की Clean Note Policy या स्वच्छ नोट नीति का मतलब RBI द्वारा जनता को अच्छी गुणवत्ता वाले बैंक नोटों की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए अपनाई गई नीति है।
- भारत में नोट बनाने के लिये इस्तेमाल में लाया जाने वाला काग़ज़ 100% रूई का उपयोग करके बनाया जाता है।
- वर्ष 1970 में पहली बार “सत्यमेव जयते” वाले बैंकनोट शुरू किए गए।
- भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम 1934 की धारा 26 के अनुसार, बैंकनोट के मूल्य का भुगतान करने हेतु बैंक उत्तरदायी है।
- सिक्कों की ढलाई SPMCIL के स्वामित्व वाली चार टकसालों में की जाती है जोकि मुंबई, हैदराबाद, कोलकाता तथा नोएडा में स्थित हैं।
- भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम की धारा 38 के अनुसार संचलन के लिये सिक्के सिर्फ RBI के माध्यम से जारी किए जाते हैं।
- अधिनियम की धारा 22 के अनुसार, Reserve Bank has the sole right to issue banknotes in India. भारत में नोट निर्गमित/जारी करने का एकमात्र अधिकार RBI के पास है।